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गोपेश्वर (चमोली)। विंटर डेस्टिनेशन औली की कृत्रिम झील में इस दौरान दुर्लभ प्रजाति के शीतकालीन प्रवासी पक्षी रूडी शेल्डक ने अपना आशियाना बनाया है। दरअसल यह पक्षी सेंट्रल एशिया, सिक्किम और लद्दाख से इन क्षेत्रों में विंटर विजिटर प्रवासी पक्षियों के रूप में आते हैं और मार्च अंतिम या अप्रैल आरंभ में वापस अपने इलाकों को लौट जाते हैं। इस विंटर सीजन में इन दुर्लभ पक्षियों के शीतकालीन पर्यटन स्थली औली की वादियों में पहुंचने से पर्यावरण प्रेमी भी गदगद हैं। औली ज्योतिर्मठ के युवा पर्यटन कारोबारी ओर बर्डर जयदीप भट्ट, कहते हैं कि इस बार औली में शीतकालीन आगंतुक प्रवासी पक्षियों की अच्छी आमद नजर आ रही है। यूरेशियन रोलर से लेकर ब्राह्मणी डक तक प्रवासी पक्षियों को औली में देख कर पर्यटक भी काफी खुश हो रहे हैं। नन्दा देवी बायोस्फियर रिजर्व छेत्र में पक्षी अवलोकन करने वाले नेचर एक्सपर्ट संजय कुंवर बताते हैं कि शीतकालीन पर्यटन स्थली औली में दुर्लभ सुर्खाब शैल डक, पक्षियों का स्पॉटेड होना क्षेत्र की पारिस्थितिक संतुलन और पर्यावरणीय लिहाज से भी है। इस बार शैल डक पक्षी को जून, जुलाई माह में ही उच्च हिमालयी क्षेत्र देवताल माणा पास में देखा गया है। ं 17,500 फीट की ऊंचाई पर देवताल झील के जमने के बाद अब इन दुर्लभ प्रजाति ने विंटर डेस्टिनेशन औली की कृत्रिम झील को अपना आशियाना बना दिया है। उन्होंने बताया कि चमोली जनपद में बर्ड वाचिंग की अच्छी संभावना है। डेढ़ साल में ही करीब 148 प्रजातियों को नंदादेवी वायोस्फियर क्षेत्र में बर्ड वाचिंग के दौरान देखे गए है। संजय कुंवर बताते हैं कि औली में कुछ दिन पूर्व ही उन्होंने नॉर्दन पिन टेल प्रवासी पक्षियों के जोड़े को बर्ड वाचिंग के दौरान औली लेक में देखा था।  अब ये रूडी शैल डक पक्षी का दिखना यहां बर्ड वाचिंग का आनंद लेने आने पक्षी प्रेमियों और प्रकृति प्रेमियों के लिए अच्छी खबर है।  प्रवासी पक्षियों के इस तरह औली में साइटिंग होने पर विंटर डेस्टिनेशन औली में पर्यटकों को पक्षी अवलोकन का नेचर गिफ्ट मिलेगा।

उन्होंने बताया कि रूडी शेल्डक को भारत में ब्रहमणी बतख, चकवा-चकवी के नाम से जाना जाता है। भी पहचान मिली है। महा काव्य रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने इन दुर्लभ सुर्खाव पक्षियों का वर्णन किया है। सुर्खाब यानी कि शेल्डक पक्षी बहुत खूबसूरत होता है। यह पक्षी मुख्यतः दलदली क्षेत्रों नदियों के किनारों, झीलों व जमा पानी की जगहों पर दिखाई देते है। यह पक्षी रात के समय भी सक्रिय रहते है। जब ये पानी में तैरते है तो इनका तैरने का तरीका अन्य बतखों से अलग दिखता है। तैरते समय ये अपनी गर्दन को ऊपर रखते है तथा शरीर के अन्य हिस्सों को पानी में ज्यादा डूबो कर रखते है। इन पक्षियों का मुख्य भोजन घास, पौधों की पत्तियां, जलीय वनस्पति व अनाज है।

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