सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल
यूट्यूब वास्तु सुमित्रा
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की महिमा विशेष है। यह भगवान शिव का प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग है। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन और स्मरण करने मात्र से कष्ट दूर हो जाते हैं। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे के पास स्थित है। सह्याद्रि पर्वत माला में स्थित भगवान शिव का यह ज्योतिर्लिंग ‘भीमाशंकर मंदिर’ के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि भगवान शिव यहां पर निवास करते हैं।
क्या है पौराणिक मान्यता
एक पौराणिक कथा के अनुसार इस स्थान पर भगवान शिव और त्रिपुरासुर राक्षस के साथ घमासान युद्ध हुआ था। इस युद्ध में शिवजी ने राक्षस का वध कर विजय प्राप्त की थी। कहा जाता है कि इस युद्ध से भयंकर गर्मी उत्पन्न हुई जिस कारण भीमा नदी सूख गई। इसके बाद भगवान शिव के शरीर से निकले पसीने से फिर से नदी जल से भर गई। यह मंदिर नागर शैली में निर्मित है।
भीमशंकर नाम कैसे पड़ा
इस ज्योतिर्लिंग का उल्लेख शिवपुराण में भी मिलता है. जिसके अनुसार कुंभकर्ण का पुत्र भीम एक विशाल राक्षस था. जब उसे ज्ञात हुआ कि उसके पिता का वध भगवान राम ने किया है तो वह उनसे बदला लेने के लिए आतुर हो गया। इसके लिए उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की. ब्रह्मा जी भीम की तपस्या से प्रसन्न हो गए और उसे विजयी होने का वरदान दे दिया।
इस वरदान से भीम ने अत्याचार आरंभ कर दिया. उसके कृत्यों से हर कोई भयभीत हो गया। यहां तक की देवी-देवता भी परेशान होने लगे। तब सभी देवी देवताओं ने इसके आंतक से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की। तब भगवान शिव ने भीम से युद्ध किया और उसे जलाकर भस्म कर दिया। इसके बाद सभी देवताओं ने भगवान शिव से इसी स्थान पर शिवलिंग रूप में निवास करने का आग्रह किया। जिसे शिवजी ने मानव कल्याण के लिए स्वीकार कर लिया। तब से भगवान शंकर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां विराजमान हैं।
शिव भक्तों की मनोकामनाएं होती हैं पूर्ण
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग एक सिद्ध स्थान है। यहां जो भी सच्चे मन से अपनी प्रार्थना लेकर आता है, वह पूर्ण होती है। सावन के मास में इस ज्योतिर्लिंग का नाम लेने से भी भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।
सावन में शिव जी भूलोक में आकर करते सृष्टि का संचालन
हिंदू कैलेंडर के अनुसार पांचवा महीना सावन बहुत पवित्र माना गया है। मान्यता है कि भोलेनाथ को प्रिय इस महीने में वह स्वयं कैलाश से धरती पर आकर इस सृष्टि का संचालन करते हैं। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु इस सृष्टि का कार्यभार छोड़ कर योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए इसके बाद इस सृष्टि का संचालन भगवान भोलेनाथ के हाथों में आ जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार श्रावण मास में भोलेनाथ संपूर्ण परिवार के साथ अपने ससुराल जाते हैं जो कि हरिद्वार के कनखल में है। शिव पुराण में इस बात का वर्णन मिलता है कि देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति द्वारा हरिद्वार के कनखल में एक यज्ञ का आयोजन किया गया था। उन्होंने इस यज्ञ में शिव जी को भी बुलाया था। तब इस यज्ञ के दौरान जब सती के पिता दक्ष प्रजापति द्वारा शिव जी का अपमान किया गया था तो उस यज्ञ में ही देवी सती ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। इस बात से क्रोधित होकर भगवान शिव के वीरभद्र रूप ने दक्ष प्रजापति का सिर धड़ से अलग कर दिया था। फिर देवताओं के बहुत प्रार्थना करने पर भोलेनाथ ने दक्ष प्रजापति को बकरे का सिर लगाकर पुनः जीवित किया था। इसके बाद राजा दक्ष ने अपने द्वारा शिवजी के अपमान की माफी मांगते हुए भोलेनाथ से वचन लिया कि वे हर वर्ष सावन के महीने में उनके यहां निवास करने आएंगे और अपनी सेवा का मौका देंगे। तब से ही माना जाता है कि हर साल श्रावण मास में कैलाश से शिवजी सपरिवार भूलोक के कनखल में आकर पूरे महीने यही विराजमान रहते हैं और ब्रह्मांड का संचालन करते हैं।