आजकल हमारे देश में संगठित होने से ज्यादा संगठन बनाने पर ध्यान दिया जा रहा है और संगठन के गंदे खेल में जहां पहले बुजुर्ग महिलाएं और युवा फस रहे हैं वही अब संगठन के दलालों का निशाना छोटे-छोटे बच्चे बन रहे हैं जिन बच्चों को अभी यह तक नहीं पता कि जिस उमर में संसार की अच्छी बातों से उनको अवगत कराना और समानता का पाठ सिखाना मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाना अनिवार्य है वही कहीं सारे संगठन के दलाल इन छोटे-छोटे बच्चों की मानसिकता को बहला-फुसलाकर अपने-अपने संगठनों की विचारधारा पर चलने के लिए मजबूर कर रहे हैं
बात छटी सी है पर समस्या बड़ी गंभीर है क्या छोटे-छोटे बच्चों को संगठन ज्वाइन कराना कानूनी अपराध नहीं जब 18 साल की आयु के बाद हमारा संविधान हमारी संस्कृति हमें समाज का हिस्सा बनने और समाज में अपनी राय देने की इजाजत देता है तो 18 साल से पहले क्यों हम छोटे-छोटे बच्चों को अलग-अलग संगठनों में बांधकर अलग अलग विचारधारा पढ़ा रहे हैं
इसे रोकने के लिए बच्चों के माता-पिता ओं को यह समाज के बुद्धिजीवी वर्ग को जो इस समाज को समानता एकता की नजर से देखते हैं क्या उन्हें आवाज उठानी चाहिए???