डॉ सुमित्रा अग्रवाल वास्तु शास्त्री

जैसे जन्मा एक अटल सत्य है, वैसे ही मृत्यु भी एक अटल सत्य है। हर आदमी अमर होने की कामना करता है और मृत्यु से डरता है। बीमार, अस्वस्थ आदमी मृत्यु सईया पर जब होता है वो तब भी जीने के लिए ललाहित होता है। अंत समय में जब प्राण वायु शरीर से बहार निकलता है तो बहुत कष्टों से देह त्यागता है। मृत्यु की बात ही आदमी को भयभीत कर देती है। धन्वन्तरि ने दीर्घायु होने के कुछ सरल उपाय बताये थे। एक दिन की बात है धन्वन्तरि घूमते घूमते अपने शिष्य वांगभट से मिलने वाराणसी पहुंचे। वंगभत ने गुरु से बताया की उन दिनों ज्यादा लोग अस्वस्थ हो रहे है और मरीजों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ गई है। गुरु ने उनसे कहा की हर किसी से ये तीन उपाय करने बोलो। वे तीन चमत्कारी उपाय है – हितभूख, ऋतभुख , मितभूख ।

हितभूख अर्थात वही खाये जो हितकर हो।
ऋतभुख अर्थात ऋतुओं , मौसम के अनुकूल सीजनल खाना खाये।
मितभूख अर्थात कम खाये। जितनी भूख हो उससे सदा ही कम खाये।
वांगभट्ट ने आश्चर्य जनक रूप से देखा की इन तीनो बातो का अनुसरण करने से मरीज़ो की संख्या कम हो गयी।
मेरे व्यक्तिगत अनुभव से मैंने पिछले दो दसको में ये जाना और पाया की हर खाने की चीज हर किसी के लिए उपयोगी नहीं होती। हर व्यक्ति को चाहिए की वो अपनी फ़ूड एलर्जी टेस्ट कराये और जिन चीजों से एलर्जी मिले उनका सेवन बंध करे, इस से भी दीर्घायु हुआ जा सकता है।
अब बात करते है ऋषि महाऋषियो की उनकी आयु इतनी अधिक कैसे है और ये सब हिमालय में ही क्यों पहुंच जाते है तपस्या करने। यहाँ एक रोचक बात बताउंगी जैसे चम्बल डाकुओ और गलत कामो के लिए प्रसिद्ध है वैसे ही हिमालय सकारात्मक, ध्यान समाधी के लिए , ये कोई इत्तेफाक नहीं है, हिमालय और शिवालिक से नदिया जो निकली है वे नार्थ से साउथ की तरफ आ रही है और चम्बल में इसका ठीक उल्टा है , नदिया साउथ से नार्थ की तरफ जा रही है। वास्तु नियमो की बात करे तो ये जल के प्रवाह की दिशा ही है जो दोनों जगह को ऐसा बना रही है। ऋषियों का हिमालय पर जाने का कारण एक और भी है, वह है तापमान। अमीबा पर शोध कर के वेगियनिको ने जाना की अगर शरीर का तापमान १८ ‘८० से जितना कम कर दिया जाये आयु उतनी ही बढ़ सकती है। इसी लिए हमारे महर्षि शून्य से निचे तापमान की जगह में जाकर तपस्या में लीन हो जाते है।

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