रंवाई के शहीदों को दी श्रद्धाजंलि
गोपेश्वर (चमोली)। टिहरी राजशाही की बर्बर दमनकारी नीतियों के खिलाफ रंवाई किसान आंदोलन में शहीद हुए लोगों की याद में मंगलवार सीटू तथा किसान सभा ने चमोली जिला मुख्यालय गोपेश्वर में कलेक्ट्रेट परिसर में सांकेतिक धरना देते हुए श्रद्धाजंलि दी। जिसमें किसान सभा के जिला मंत्री ज्ञानेंद्र खंतवाल, जिला अध्यक्ष बस्ती लाल, भूपाल सिंह रावत, रघुवीर लाल, नौजवान सभा के गजे सिंह बिष्ट, अनिल राज, महिला समिति की गीता बिष्ट, पुष्पा किमोठी, सीटू के मदन मिश्रा आदि शामिल थे।
क्या है रंवाई किसान विद्रोह
पूरे देश में अंग्रेजी हुकूमत की दमनकारी नीतियों के खिलाफ महात्मा गांधी तथा प्रगतिशील ताकतों के नेतृत्व में राष्ट्रीय मुक्ति आदोलन जोरों पर था। गांधी के आह्वान पर छात्र स्कूल, कालेजों का बहिष्कार कर रहे थे। 1928 में साईमन कमीशन के बहिष्कार के दौरान लाला लाजपत राय पर बर्बर लाठीचार्ज के परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु ने आन्दोलन में आग पर घी डालने का कार्य किया। शहीदे आजम भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि क्रान्तिकारियों की गिरफ्तारी तथा क्रान्तिकारियों की ओर से अंग्रेजी हुकुमत का डटकर विरोध आदि का असर टिहरी राजशाही के खिलाफ चल रहे आन्दोलन पर भी देखने को मिला। टिहरी राजशाही के खिलाफ इस दौर में अनेक आन्दोलन हुऐ जिनमें प्रमुख रूप से बेगारी प्रथा, अत्यधिक करों, जंगल पर हक हकूकों की लड़ाई आदि प्रमुख थे। 30 मई 1930 का तिलाड़ी विद्रोह भी इसी कडी का हिस्सा है। जंगल पर जनता के हक अधिकार की अपनी शांतिपूर्ण लड़ाई के लिए तिलाड़ी के मैदान में एकत्रित हुई निहत्थी किसान जनता पर टिहरी की राजशाही फौज ने जनता को तीन ओर से घेर कर अंधाधुंध फायरिंग खोलकर जलियांवाला बाग नरसंहार की पुनरावृत्ति कर दी। इस प्रकार रंवाई में एकत्रित जनता ने अपने हक हकूकों की रक्षा तथा राजशाही के खिलाफ उनके बलिदान से एक मिशाल कायम की, इस गोलीकांड से राजशाही का जनविरोधी असली चेहरा उजागर हुआ। तिलाड़ी नरसंहार के बाद राजशाही का दमनचक्र तेज हुआ, किन्तु टिहरी राजशाही के खिलाफ संघर्षरत जनता ने हार नही मानी व राजशाही के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखते हुए श्रीदेव सुमन जैसे महत्वपूर्ण सेनानी मिले। जिन्होंने अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभाते हुऐ अपनी जनता की खातिर असहनीय कष्ट झेले तथा अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। आगे चलकर कामरेड नागेंद्र सकलानी, मोलू भरदारी की शहादत ने राजशाही की गुलामी से टिहरी की जनता को सदा-सदा के लिए मुक्ति दे दी तथा पेशावर विद्रोह के महानायक कामरेड चन्द्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में टिहरी राजशाही का सदा- सदा के लिए अन्त हो गया। इस प्रकार रंवाई विद्रोह के लगभग 18 साल के अन्तराल में ही टिहरी की जनता को राजशाही की गुलामी व जुल्म से मुक्ति मिली। रवांई की जनता का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। रंवाई बिद्रोह की 93वीं वर्षगांठ पर अखिल भारतीय किसान सभा जिला इकाई चमोली वह सीटू जनपद चमोली ने संयुक्त रूप से कलेक्ट्रेट परिसर में सांकेतिक धरना देकर रंवाई के शहीदों को शत् शत् नमन करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी।