संपादक की कलम से
उत्तराखंड राज्य जो क्रांति और आंदोलन से बना है जिसको पाने के लिए लोगों ने अपनी जान निछावर की है जहां बच्चे बच्चे के अंदर क्रांतिकारी खून है आज उसी राज्य के लोगों को आंदोलन करने से रोका जा रहा है आज यहां के लोगों को सच बोलने से रोका जा रहा है चाहे अपने हक की लड़ाई सड़कों पर लड़ने से हो चाहे सोशल मीडिया पर हो हर जगह सच बोलने पर पाबंदी लगाई जा रही है
हाल ही में हुई कई सारी घटनाएं जिन घटनाओं के बाद हमारे राज्य में बड़े आंदोलन होने चाहिए थे सोशल मीडिया पर हर तरफ इन घटनाओं की बात होनी चाहिए थी जहां शासन से लेकर प्रशासन तक को इन घटनाओं पर जनता का साथ देना चाहिए वही इन घटनाओं पर बोलने पर भी रोक लगाई जा रही है क्या इस दिन के लिए हमने इस राज्य की मांग की थी क्या इस दिन के लिए आंदोलनकारियों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था कुछ ऐसे ही सवाल है जो हर तरफ गूंज रहे हैं आज अंग्रेजों के जमाने का समय याद आता है जहां पर आंदोलनकारियों को क्रांतिकारियों को दबाया जाता था उन्हें डराया जाता था उन्हें गोलियों से भून दिया जाता था आज कुछ ऐसा ही माहौल हमारे राज्य में भी बना हुआ है जैसे जलियांवाला बाग में मरने वाले भी हमारे थे और मारने वाले भी वैसा ही कुछ आज हमारे राज्य में भी हो रहा है दोषी भी अपने लोग हैं और उन दोषियों को बचाने वाले भी आज ऐसा लगता है जैसे कानून व्यवस्था हमारे अपने देश अपने राज्य की नहीं अंग्रेजों की हो आज भी हमारी कानून व्यवस्था गुलाम है और गुलामी में जी रही है जो सच कहने वालों को डराती है सच को सामने लाने वालों को दबाती है और कोई सच लिख दे तो उसे जेल में डाल देती है